काग़ज़ से बनी एक और किशती,
आज बेहर में डूब गई है!
और एक नन्ही सी लाल क़मीज़ पहने,
उसमें इंसानियत फौत हो गई है।।
समंदर आज कुछ फिर से,
ग़मगीन सा हो चला है।
और ख़ुद के आँसू पीकर,
कुछ और नमकीन हो गया है।।
अपनी लहरों की थपकियौं से,
सुला दिया एक और बचपन।
और सीने की गहराई में,
डुबो दी नन्ही सी सिसकन।।
खुदा की फ़ितरत भी आज,
थोड़ी सी मर गई है।
कि ज़िन्दगी सुबह साहिल पे,
आज बेहर में डूब गई है!
और एक नन्ही सी लाल क़मीज़ पहने,
उसमें इंसानियत फौत हो गई है।।
समंदर आज कुछ फिर से,
ग़मगीन सा हो चला है।
और ख़ुद के आँसू पीकर,
कुछ और नमकीन हो गया है।।
अपनी लहरों की थपकियौं से,
सुला दिया एक और बचपन।
और सीने की गहराई में,
डुबो दी नन्ही सी सिसकन।।
खुदा की फ़ितरत भी आज,
थोड़ी सी मर गई है।
कि ज़िन्दगी सुबह साहिल पे,
औंधी पड़ी मिली है।।
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